देश के बड़े राज्यों में से एक उत्तर प्रदेश का राम मंदिर विवाद हमेशा से ही चर्चा का विषय रहा है लेकिन आज एक अहम फैसला दस्तक देने वाला है कि आखिर यह जमीन किसको बिलोंग करती है क्यूंकि यह विवाद जितना पेचीदा है, उतना ही इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला भी पेचीदा था जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी.
आज दिनांक 29 अक्टूबर 2018 प्रातः 11 बजे से अयोध्या में 2.27 एकड़ जमीन को लेकर सुनवाई शुरु हो चुकी है. देश की बड़ी अदालत द्वारा यह एक ऐतिहासिक फैसला होगा इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट, उत्तर प्रदेश ने इस जमीन को तीन हिस्सों में बाँट दिया था, नतीजतन जमीन पर मालिकाना हक वाकई है किसका, इसको लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के अगेंस्ट बहुत सी याचिकाएं दायर हुई.
ब्रेकिंग न्यूज 29 अक्टूबर 2018: सर्वोच्च न्यायालय ने जनवरी 2019 तक अयोध्या मामले की सुनवाई को स्थगित कर दिया है, उसके बाद सुनवाई की तारीख तय करेगा.
30 सितम्बर 2010 को इलाहबाद कोर्ट ने श्री राम की जन्मभूमि कही जाने वाली अयोध्या की 2.27 एकड़ को रामलला विराजमान, सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा में बराबर बाँट दिया और इस फैसले के बाद विवाद और पेचीदा होता चला गया. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और दो जस्टिस संजय किशन कॉल और एम जोसेफ इस मामले को आज से नया मोड़ देंगे.
क्या है टाइटल सूट?
इलाहबाद कोर्ट ने भले ही 30 सितम्बर 2010 को फैसला लिया हो लेकिन इस फैसले से कोई भी इत्तेफाक रखने को राजी नहीं हुआ, नतीजतन 9 मई 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगाने का निर्णय लिया. राम मंदिर विवाद में क्या है टाइटल सूट? मालिकाना हक की इस लड़ाई को ही टाइटल सूट कहा जाता है, देखते हैं SC के सुनवाई बाद क्या फैसला निकलता है.
इस जमीन पर मालिकाना हक किसका है, यह सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में बहुत जल्द बता देगा. बात करते हैं जमीन किस तरह तीन हिस्सों में बंटी, आजादी के बाद 1950 में गोपाल सिंह विशारद ने याचिका दायर कर हिन्दू धर्म के रीति रिवाज के अनुसार पूजा की मांग की, 1959 में निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी इस जमीन पर अपना दावेदारी की बात कही.